हिन्दू धर्म के अंतर्गत वेदों को परम पवित्र और सर्वोच्च ज्ञान का स्रोत माना गया है। चार वेद—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद—को ब्रह्मज्ञान का आधार समझा जाता है। इन वेदों में परमेश्वर की पूजा और साधना के सर्वोत्तम मार्गों का वर्णन है। परंतु, एक बड़ा विरोधाभास यह है कि अधिकांश हिन्दू समाज, जो वेदों को अत्यधिक मान्यता देता है, वेदों के निर्देशों के विपरीत कार्य करता है। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि लगभग 80% हिन्दू समाज ने कभी वेदों का अध्ययन नहीं किया है, और जो करते हैं वे भी उसकी गहराई से अनभिज्ञ हैं।
1. वेदों के विपरीत भक्ति कर्म
वेदों में पूजा और साधना के विशिष्ट नियम बताए गए हैं। लेकिन हिन्दू समाज का एक बड़ा हिस्सा इन विधानों के विपरीत आचरण करता है। उदाहरण के लिए, उपवास, पित्तर पूजा, और विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा हिन्दू समाज में प्रचलित हैं, जबकि वेद और गीता इनका विरोध करते हैं।
प्रमाण: गीता के अध्याय 6, श्लोक 16 में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अत्यधिक उपवास या भूखे रहकर योग साधना करना अनुचित है। फिर भी, हिन्दू धर्मगुरु उपवास को अनिवार्य बताते हैं, जो शास्त्रों के निर्देशों के विपरीत है।
2. धार्मिक ग्रंथों का असली ज्ञान नहीं
हिन्दू समाज में धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। श्रीमद्भगवत गीता, रामायण, महाभारत, और पुराणों का पाठ हिन्दू समाज में आम है। परंतु, अधिकांश हिन्दू इन ग्रंथों के वास्तविक ज्ञान से वंचित हैं। इसका परिणाम यह है कि वे अपने जीवन में अनेक पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन सच्चे मोक्ष से दूर रहते हैं।
प्रमाण: गीता के अध्याय 15, श्लोक 17 में स्वयं भगवान कहते हैं कि "पुरुषोत्तम परमात्मा जो अविनाशी और सबका धारण-पोषण करने वाला है, वह मुझसे अन्य है।" इससे स्पष्ट है कि श्री कृष्ण स्वयं परमात्मा नहीं हैं, बल्कि उनसे भी ऊपर कोई सर्वोच्च परमात्मा हैं।
3. तीनों देवताओं की मृत्यु और उत्पत्ति
हिन्दू समाज में यह धारणा है कि ब्रह्मा, विष्णु, और महेश तीनों देवता अविनाशी और स्वयंभू हैं। लेकिन सत्य यह है कि ये तीनों देवता भी जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
प्रमाण: श्रीमद् देवीभागवत पुराण के तीसरे स्कंद, अध्याय 5 में यह स्पष्ट किया गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, और शिव का जन्म होता है और मृत्यु भी होती है। ये तीनों देवता माता दुर्गा से उत्पन्न हुए हैं।
4. वेदों के विपरीत पूजा पद्धतियाँ
वेदों और गीता के अनुसार, हिन्दू समाज में प्रचलित पूजा पद्धतियाँ जैसे पित्तर पूजा, भूत पूजा, और अन्य देवी-देवताओं की पूजा निषिद्ध हैं।
प्रमाण: गीता के अध्याय 9, श्लोक 25 में कहा गया है कि जो पित्तरों की पूजा करते हैं, वे पित्तरों के लोक में जाते हैं; जो भूतों की पूजा करते हैं, वे भूतों के लोक में जाते हैं; और जो मेरी पूजा करते हैं, वे मेरे लोक में आते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि अन्य पूजा पद्धतियाँ केवल मोक्ष के मार्ग से भटका सकती हैं।
5. गीता में व्रत और अन्य प्रथाओं की आलोचना
गीता के अध्याय 6, श्लोक 16 में व्रत और अन्य कठोर तपस्याओं को व्यर्थ बताया गया है। इसके बावजूद, हिन्दू समाज में धर्मगुरु इन प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं, जो शास्त्रों के विपरीत हैं और इसका कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं है।
6. श्री कृष्ण का भी जन्म मृत्यु होता है
गीता के अध्याय 4, श्लोक 5 में श्री कृष्ण स्वयं स्वीकार करते हैं कि उनका और अर्जुन का पहले भी कई बार जन्म हो चुका है। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्री कृष्ण भी नश्वर हैं और उनकी भी जन्म और मृत्यु होती है। यह हिन्दू समाज में प्रचलित उस धारणा का खंडन करता है जिसमें श्री कृष्ण को अविनाशी परमात्मा माना जाता है।
7. ओम् नाम का वास्तविक अर्थ
श्री देवी महापुराण के अनुसार, "ओम्" नाम का जाप करने से साधक को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है, जो कि एक नाशवान लोक है। गीता के अध्याय 8, श्लोक 16 में कहा गया है कि ब्रह्मलोक में गए साधक भी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त नहीं होते।
8. पूर्ण मोक्ष का मार्ग
पवित्र गीता और वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पूर्ण मोक्ष केवल उसी साधक को प्राप्त होता है जो शास्त्रों के अनुसार साधना करता है और एक तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेता है।
प्रमाण: गीता के अध्याय 15, श्लोक 4 में कहा गया है कि तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान प्राप्त करके उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहां जाने के बाद साधक वापस संसार में नहीं आता।
हिन्दू समाज में शास्त्रों के वास्तविक ज्ञान की कमी और धर्मगुरुओं द्वारा फैलाए गए मिथकों के कारण अधिकांश हिन्दू वेदों के विपरीत आचरण करते हैं। शास्त्रों का सही ज्ञान और तत्वदर्शी संत से दीक्षा ही मोक्ष का वास्तविक मार्ग है। संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्रों के वास्तविक ज्ञान को उजागर किया है और सच्चे भक्ति मार्ग का प्रचार कर रहे हैं। यह समय है कि हम शास्त्रों के यथार्थ ज्ञान को समझें और सही मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करें।
FAQs
1. क्या सभी हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करना आवश्यक है?
हाँ, हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करना आवश्यक है क्योंकि ये शास्त्र हमें सही मार्ग दिखाते हैं। इनके अध्ययन से ही हम शास्त्रों के अनुसार साधना कर सकते हैं।
2. क्या वेदों के विपरीत पूजा पद्धतियों का पालन करना उचित है?
नहीं, वेदों और गीता के विपरीत पूजा पद्धतियों का पालन करना अनुचित है। इससे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती।
3. क्या व्रत और तपस्या का कोई आध्यात्मिक लाभ है?
गीता के अनुसार, अत्यधिक व्रत और तपस्या का कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं है। ये केवल शरीर को कष्ट देने वाले कर्म हैं।
4. क्या श्री कृष्ण परमात्मा हैं?
गीता के अनुसार, श्री कृष्ण परमात्मा नहीं हैं। उनसे भी ऊपर एक सर्वोच्च परमात्मा है।
5. "ओम्" नाम का जाप करने से क्या होता है?
"ओम्" नाम का जाप करने से साधक को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है, जो कि नाशवान है और जहां से वापस आना पड़ता है।
6. पूर्ण मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान प्राप्त करके और शास्त्रों के अनुसार साधना करने से ही हो सकती है।