True Guru vs Fake Guru | नकली धर्म गुरुओं के अज्ञान की पोल खोलती चौंकाने वाली सचाई

धर्म मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन जब धर्म के प्रति अज्ञानता का प्रसार होने लगता है, तो यह समाज में गलतफहमियों और मिथ्याचार का कारण बन सकता है। आज के समय में नकली धर्म गुरुओं ने धर्म के नाम पर गलत शिक्षाओं का प्रसार करके श्रद्धालुओं को भटका दिया है। इन धर्म गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा न केवल धार्मिक ग्रंथों के विपरीत होती है, बल्कि यह समाज में भ्रम का कारण भी बनती है। इस लेख में हम ऐसे ही कुछ नकली धर्म गुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश करेंगे और उनके द्वारा फैलाए गए मिथ्याचार का खंडन करेंगे।

Kahi Apka Guru Nakali Toh Nahi | नकली धर्म गुरुओं के अज्ञान की पोल खोलती चौंकाने वाली सचाई



Table of Contents

1. परिचय
    - धर्म के प्रति आस्था और अज्ञानता का प्रसार
    - नकली धर्म गुरुओं का प्रभाव और उनकी गलत शिक्षाएं

2. ईसाई और मुस्लिम धर्म में परमात्मा की धारणा
    - पादरियों और मौलवियों का दावा: निराकार ईश्वर
    - संत रामपाल जी महाराज का दृष्टिकोण: साकार परमात्मा का प्रमाण

3. मांसाहार पर विवाद: मुस्लिम श्रद्धालुओं के साथ धोखा
    - जाकिर नाइक के विचार: मांस खाना धार्मिक आदेश?
    - संत रामपाल जी का प्रतिवाद: मांसाहार शैतान का आदेश

4. सनातन धर्म में मूर्ति पूजा का विवाद
    - आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण: मूर्ति पूजा का खंडन
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: कबीर साहेब की महिमा और साकार परमात्मा

5. श्राद्ध और पिंडदान पर मतभेद
    - अनिरुद्धाचार्य जी का समर्थन: श्राद्ध और पिंडदान की आवश्यकता
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: गीता और वेदों के प्रमाण के साथ श्राद्ध का खंडन

6. धर्म के नाम पर फैलाई गई अज्ञानता
    - आचार्य प्रशांत और निराकार ब्रह्म की धारणा
    - संत रामपाल जी का प्रतिवाद: गीता, वेद और कबीर वाणी के प्रमाण

7. गीता का गलत अनुवाद और हिंदुओं से धोखा
    - गीता के अध्याय 18, श्लोक 66 का व्रज शब्द का गलत अर्थ
    - संत रामपाल जी का सही अनुवाद: व्रज का वास्तविक अर्थ

8. शिव लिंग पूजा का विवाद
    - शिव पुराण के अनुसार शिव लिंग की पूजा का सत्य
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: शिव लिंग की पूजा का सत्य

9. श्राद्ध के बारे में गलत धारणाएं
    - श्री नानक जी और श्राद्ध का खंडन
    - गीता और मार्कन्डेय पुराण में श्राद्ध का खंडन

10. जीवन मरण का सत्य
    - देवकीनंदन जी का दावा: जन्म-मृत्यु का न समाप्त होना
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: गीता के श्लोकों से जन्म-मृत्यु का अंत

11. मनमुखी साधना का भ्रम
    - अनिरुद्धाचार्य जी का दावा: मनमुखी साधना से मुक्ति संभव
    - संत रामपाल जी का प्रतिवाद: शास्त्रविरुद्ध साधना का नकार

12. पापों से मुक्ति का साधन
    - अनिरुद्धाचार्य जी का दावा: पापों को भोगना अनिवार्य
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: पूर्ण परमात्मा की भक्ति से पापों का नाश

13. साकार और निराकार परमात्मा का विवाद
    - अनिरुद्धाचार्य जी का मिश्रित दृष्टिकोण: साकार और निराकार दोनों
    - संत रामपाल जी का प्रमाण: वेदों में साकार परमात्मा का वर्णन

14. नाम जाप और मुक्ति का मार्ग
    - अनिरुद्धाचार्य जी का दावा: बिना नाम जाप के मुक्ति संभव
    - संत रामपाल जी का दृष्टिकोण: ओम् नाम का जाप और गीता का समर्थन

15. नकली धर्म गुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश
    - संत रामपाल जी महाराज के तत्त्वज्ञान का महत्व


ईसाई और मुस्लिम धर्म में परमात्मा की धारणा

ईसाई धर्म के पादरी और मुस्लिम धर्म के काजी और मौलवी, दोनों ही परमात्मा को निराकार मानते हैं। उनके अनुसार, गॉड या अल्लाह निराकार है और उसकी कोई मूर्ति या रूप नहीं है। यह धारणा धर्म के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। संत रामपाल जी महाराज ने बाइबल, तौरेत और कुरान जैसे धर्मग्रंथों से प्रमाणित करके यह बताया है कि परमात्मा साकार है और मनुष्य के रूप में विद्यमान है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि परमात्मा ने सृष्टि की रचना की और सातवें दिन सिंहासन पर विराजमान हुए, जो यह सिद्ध करता है कि परमात्मा का स्वरूप साकार है।

मांसाहार पर विवाद: मुस्लिम श्रद्धालुओं के साथ धोखा

मुस्लिम धर्म प्रचारक जाकिर नाइक का यह दावा है कि मांस खाना अल्लाह का आदेश है। उन्होंने इस विचारधारा को मुस्लिम समुदाय में व्यापक रूप से फैलाया है। हालांकि, संत रामपाल जी महाराज ने कुरान, तौरात और बाइबल से प्रमाणित किया है कि मांसाहार अल्लाह का नहीं, बल्कि शैतान का आदेश है। हजरत मोहम्मद जी ने कभी मांस को हाथ नहीं लगाया और न ही उनके अनुयायियों ने कभी मांस खाया। इस प्रकार, जाकिर नाइक जैसे धर्म गुरुओं द्वारा मांसाहार को धर्म का हिस्सा बताना एक बड़ा धोखा है।

सनातन धर्म में मूर्ति पूजा का विवाद

आचार्य प्रशांत, जो स्वयं को सनातन धर्म का प्रवक्ता मानते हैं, मूर्ति पूजा और अन्य धार्मिक कर्मकांडों का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि कबीर साहेब जी केवल एक कवि, संत और समाज सुधारक थे। लेकिन, संत रामपाल जी महाराज ने गीता, वेद, कुरान, बाइबल और गुरुग्रंथ साहिब से प्रमाणित किया है कि कबीर साहेब जी न केवल एक संत थे, बल्कि वे पूर्ण परमात्मा भी थे। उनकी शिक्षा और जीवन का उद्देश्य सच्चे धर्म और परमात्मा की वास्तविकता को उजागर करना था।

श्राद्ध और पिंडदान पर मतभेद

अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के अनुसार, श्राद्ध और पिंडदान करना आवश्यक है। लेकिन, संत रामपाल जी महाराज ने गीता अध्याय 9 श्लोक 25 का हवाला देकर यह बताया है कि पितरों की पूजा व्यर्थ है और इससे कुछ लाभ नहीं होता। गीता के अनुसार, भूतों को पूजने वाले भूतों को ही प्राप्त होते हैं, जो यह दर्शाता है कि श्राद्ध और पिंडदान करना शास्त्रविरुद्ध साधना है।

धर्म के नाम पर फैलाई गई अज्ञानता

धर्म के प्रति अज्ञानता फैलाने वाले गुरुओं में आचार्य प्रशांत प्रमुख हैं, जो यह मानते हैं कि ब्रह्म निराकार है और उसे किसी रूप में नहीं देखा जा सकता। लेकिन, संत रामपाल जी महाराज ने गीता, वेद और सूक्ष्मवेद के माध्यम से यह प्रमाणित किया है कि ब्रह्म साकार है और मनुष्य रूप में विद्यमान है। उन्होंने धर्मग्रंथों से यह सिद्ध किया है कि ब्रह्म का साकार रूप ही वास्तविक है।

गीता का गलत अनुवाद और हिंदुओं से धोखा

हिंदू धर्मगुरुओं द्वारा गीता का गलत अनुवाद किया गया है, जिससे हिंदुओं के साथ बड़ा धोखा हुआ है। गीता अध्याय 18 के श्लोक 66 में "व्रज" शब्द का अर्थ गलत ढंग से "आना" बताया गया है, जबकि इसका सही अर्थ "जाना" है। संत रामपाल जी महाराज ने इस अज्ञान का पर्दाफाश करते हुए सही अर्थ का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि अर्जुन को केवल उस परमात्मा की शरण में जाने के लिए कहा गया था, लेकिन धर्म गुरुओं ने इस सत्य को छिपाकर हिंदुओं को गुमराह किया है।

शिव लिंग पूजा का विवाद

हिंदू धर्म में शिव लिंग की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है, लेकिन यह पूजा वास्तव में क्या दर्शाती है, इस पर विवाद है। शिव पुराण विधवेश्वर संहिता के अनुसार, शिव लिंग पूजा के पीछे का सच कुछ और है। संत रामपाल जी महाराज ने इस विषय पर स्पष्टता प्रदान की है और बताया है कि शिव लिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और इसकी पूजा से क्या सिद्ध होता है।

श्राद्ध के बारे में गलत धारणाएं

श्राद्ध और पिंडदान को लेकर समाज में कई प्रकार की गलतफहमियां फैली हुई हैं। कुछ धर्मगुरु इन कर्मकांडों को मोक्ष प्राप्ति का साधन बताते हैं। लेकिन श्री नानक देव जी ने भी श्राद्ध क्रिया का स्पष्ट खंडन किया है। इसके प्रमाण के रूप में "भाई बाले वाली जन्म साखी श्री नानक देव" में लिखा है कि श्राद्ध करने से आत्मा को कोई लाभ नहीं होता। 

संत रामपाल जी महाराज ने गीता और मार्कंडेय पुराण से प्रमाणित किया है कि पितर पूजा और श्राद्ध मूर्खों की साधना है। गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट किया गया है कि जो लोग पितरों को पूजते हैं, वे पितरों के लोक को ही प्राप्त होते हैं, लेकिन यह मोक्ष का मार्ग नहीं है। इसी तरह, मार्कंडेय पुराण में भी पितर पूजा को निष्फल बताया गया है। अतः यह स्पष्ट है कि श्राद्ध और पिंडदान करना केवल अज्ञान का प्रसार है और इससे किसी प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है।

जीवन मरण का सत्य

देवकीनंदन जी जैसे धर्मगुरुओं का दावा है कि जन्म और मृत्यु का चक्र कभी समाप्त नहीं हो सकता। वे कहते हैं कि जीवन और मृत्यु एक चक्र है, जिसमें सभी जीव फंसे हुए हैं। लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने गीता के अध्याय 15 श्लोक 4 और 17 के आधार पर यह सिद्ध किया है कि उत्तम पुरुष परमात्मा की भक्ति करने वाले भक्तजन कभी भी संसार में लौट कर नहीं आते। उनका जन्म-मृत्यु का चक्र हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।

गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में स्पष्ट किया गया है कि परमात्मा का पद प्राप्त करने वाले भक्तजन फिर कभी संसार में लौटकर नहीं आते। इसी प्रकार, श्लोक 17 में बताया गया है कि परमात्मा अविनाशी हैं और वह समस्त लोकों का धारण पोषण करते हैं। इस प्रकार, संत रामपाल जी महाराज का तत्त्वज्ञान यह स्पष्ट करता है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति से जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त हो सकता है।

मनमुखी साधना का भ्रम

कुछ स्वघोषित धर्मगुरु मनमुखी साधना को ही मुक्ति का मार्ग बताते हैं। वे दावा करते हैं कि शास्त्रों में दिए गए नियमों के बिना भी साधना की जा सकती है और इससे मुक्ति संभव है। अनिरुद्धाचार्य जी महाराज इसी प्रकार की साधना का समर्थन करते हैं। 

हालांकि, गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में गीता ज्ञान दाता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, और न ही उसकी गति होती है। संत रामपाल जी महाराज ने इसी श्लोक के आधार पर यह सिद्ध किया है कि मनमुखी साधना व्यर्थ है और इससे कोई लाभ नहीं होता। शास्त्रविरुद्ध साधना करने से साधक का जीवन व्यर्थ हो जाता है और उसे कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता।

पापों से मुक्ति का साधन

अनिरुद्धाचार्य जी जैसे धर्मगुरु यह दावा करते हैं कि किसी भी भक्ति साधना से पाप नहीं कट सकते। उनके अनुसार, पापों का भोगना अनिवार्य है और इन्हें काटा नहीं जा सकता। 

संत रामपाल जी महाराज ने इस मिथक का खंडन करते हुए गीता और वेदों से प्रमाणित किया है कि पूर्ण परमात्मा की भक्ति से पापों का नाश हो सकता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 में कहा गया है कि यज्ञशिष्टाशिनः साधक अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। इसी प्रकार, पवित्र यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में कहा गया है कि परमात्मा अपने सतभक्त के घोर पापों का भी नाश कर सकते हैं। जब पाप ही समाप्त हो जाते हैं, तो कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं और भक्त का जीवन सुखमय हो जाता है। इसलिए, संत रामपाल जी का तत्त्वज्ञान बताता है कि पापों का भोगना आवश्यक नहीं है, बल्कि सतभक्ति से पापों का नाश संभव है।

साकार और निराकार परमात्मा का विवाद

अनिरुद्धाचार्य जी जैसे कुछ धर्मगुरु यह मानते हैं कि परमात्मा का स्वरूप साकार भी है और निराकार भी। वे यह दावा करते हैं कि परमात्मा को दोनों रूपों में देखा जा सकता है। 

लेकिन संत रामपाल जी महाराज ने वेदों और शास्त्रों से प्रमाणित किया है कि परमात्मा का स्वरूप साकार है। वेदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परमात्मा मानव सदृश्य साकार हैं और वे द्यूलोक अर्थात सतलोक के तीसरे पृष्ठ पर सिंहासन पर विराजमान हैं। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 82 मंत्र 1 में लिखा है कि परमात्मा राजा के समान दर्शनीय हैं और वे ऊपर के लोक में विराजमान हैं। अतः यह सिद्ध होता है कि परमात्मा का स्वरूप साकार है और उन्हें मानव रूप में देखा जा सकता है।

नाम जाप और मुक्ति का मार्ग

अनिरुद्धाचार्य जी जैसे धर्मगुरु यह दावा करते हैं कि बिना नाम जाप के भी साधक की मुक्ति संभव है। उनके अनुसार, नाम जाप आवश्यक नहीं है और साधक को केवल अपनी आस्था के आधार पर मुक्ति मिल सकती है। 

संत रामपाल जी महाराज ने इस मिथक का खंडन करते हुए पवित्र यजुर्वेद और गीता से प्रमाणित किया है कि नाम जाप के बिना मुक्ति संभव नहीं है। यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 15 में लिखा है कि ओम् नाम का जाप करना ही मानव जीवन का मुख्य कर्तव्य है। इसी प्रकार, गीता अध्याय 8 श्लोक 5 और 7 में भी कहा गया है कि युद्ध करते समय भी परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। संत रामपाल जी का तत्त्वज्ञान बताता है कि नाम जाप ही मुक्ति का वास्तविक मार्ग है और इसके बिना साधक को मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।


इस लेख में हमने नकली धर्म गुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश किया है। ये धर्मगुरु अपने अज्ञान के कारण समाज में भ्रम फैलाते हैं और श्रद्धालुओं को गलत मार्ग पर ले जाते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने धर्मग्रंथों से प्रमाणित करके यह सिद्ध किया है कि धर्म का वास्तविक ज्ञान क्या है और सही साधना का मार्ग कौन सा है। 

संत रामपाल जी महाराज के तत्त्वज्ञान के अनुसार, परमात्मा साकार हैं और उन्हें मानव रूप में देखा जा सकता है। मांसाहार, मूर्ति पूजा, श्राद्ध और पिंडदान जैसी प्रथाएं शास्त्रविरुद्ध हैं और इनका पालन करने से कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। पूर्ण परमात्मा की भक्ति और नाम जाप से ही साधक को वास्तविक मुक्ति प्राप्त हो सकती है। 

FAQs 

1. संत रामपाल जी महाराज ने किस आधार पर परमात्मा को साकार बताया है?
    - संत रामपाल जी महाराज ने वेदों, गीता, बाइबल, और कुरान जैसे पवित्र ग्रंथों से प्रमाणित किया है कि परमात्मा का स्वरूप साकार है। वे मानव रूप में विद्यमान हैं और सृष्टि के रचयिता हैं।

2. क्या मांस खाना धर्म का हिस्सा है?
    - संत रामपाल जी महाराज ने प्रमाणित किया है कि मांसाहार शैतान का आदेश है, न कि अल्लाह या परमात्मा का। हजरत मोहम्मद जी ने कभी मांस नहीं खाया, और न ही उनके अनुयायियों ने।

3. श्राद्ध और पिंडदान करने का क्या महत्व है?
    - गीता और वेदों के अनुसार, श्राद्ध और पिंडदान व्यर्थ की साधना हैं। ये शास्त्रविरुद्ध प्रथाएं हैं, जिनसे मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं है।

4. क्या मनमुखी साधना से मुक्ति संभव है?
    - संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, मनमुखी साधना शास्त्रविरुद्ध है और इससे कोई लाभ नहीं होता। सही मार्गदर्शन और शास्त्रों के अनुसार साधना करना ही मुक्ति का मार्ग है।

5. क्या नाम जाप के बिना मुक्ति संभव है?
    - नहीं, संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, नाम जाप के बिना मुक्ति संभव नहीं है। यजुर्वेद और गीता में स्पष्ट कहा गया है कि ओम् नाम का जाप ही मुक्ति का मार्ग है।

6. क्या परमात्मा का स्वरूप निराकार है?
    - नहीं, संत रामपाल जी महाराज ने वेदों और शास्त्रों से प्रमाणित किया है कि परमात्मा साकार हैं और उन्हें मानव रूप में देखा जा सकता है।


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