Gita Aur Vedo Ke Anusar Kya Vrat Aur Pitra Puja Varjit Hai | गीता और वेदों के अनुसार क्या व्रत और पितृ पूजा वर्जित हैं? जानें असली सत्य

प्रिय पाठकों, क्या आपने कभी सोचा है कि जो धर्म गुरु हमें व्रत रखने, पितृ पूजा करने और मूर्ति पूजा की सलाह देते हैं, वे क्या वास्तव में शास्त्रों के अनुरूप हैं? आइए, हम गीता और वेदों के प्रमाणों के आधार पर इन प्रचलित प्रथाओं की सत्यता पर विचार करें।


Gita ke Anusar Vrat Karna vyarth hai


1. व्रत रखने का शास्त्रीय आधार

  - गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में भगवान कृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि न तो अत्यधिक खाने वाले का और न ही व्रत रखने वाले का योग सिद्ध होता है। इसका मतलब है कि व्रत रखने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह शास्त्र के विरुद्ध है।
  

 2. पितृ पूजा और श्राद्ध

   - गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा गया है कि जो पितृ पूजा करता है, वह यमलोक में पितरों को प्राप्त होता है। इससे सिद्ध होता है कि पितृ पूजा करने वाले मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते।
   - श्राद्ध पूजा एक पारंपरिक हिंदू कर्मकांड है, जिसे मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है। इस पूजा में, मृतक के लिए भोजन और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके और वे अगले जन्म में सुखी हो सकें। परंतु, इस प्रक्रिया को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

शास्त्रों में श्राद्ध पूजा की आलोचना

- गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट किया गया है कि जो पितरों की पूजा करते हैं, उन्हें पितरों का ही लोक प्राप्त होता है, जबकि जो देवताओं की पूजा करते हैं, उन्हें देवताओं का लोक मिलता है। यह पूजा आत्मा को मोक्ष नहीं दिलाती बल्कि उसे पुनर्जन्म के चक्र में बांध देती है।

- मार्कण्डेय पुराण में श्राद्ध कर्म को अविद्या अर्थात् अज्ञान कहा गया है। यह शास्त्र विरुद्ध क्रिया है जो आत्मा के कल्याण के विपरीत मानी गई है।

- संत गरीबदास जी ने भी कहा है कि जीवित माता-पिता की सेवा न करके, उनकी मृत्यु के बाद श्राद्ध करना व्यर्थ है। परमात्मा की सच्ची भक्ति ही आत्मा को मोक्ष दिला सकती है।

- तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का कथन है कि यदि हम तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान प्राप्त करें और उसके अनुसार भक्ति करें, तो हमें सतलोक प्राप्त होता है, जहाँ से फिर आत्मा कभी जन्म-मरण के चक्र में नहीं आती। 

शास्त्रों के अनुसार सत्य भक्ति का महत्व

- गीता के अध्याय 18 श्लोक 62 और अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा गया है कि तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर तत्वज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तत्वज्ञान के माध्यम से अज्ञान का नाश करके परमपद की खोज करनी चाहिए। यही सत्य भक्ति का मार्ग है जो आत्मा को मोक्ष दिलाता है।

 3. मूर्ति पूजा की सच्चाई

   - कबीर साहेब ने भी मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया है। उनका कहना है कि यदि पत्थर पूजने से भगवान मिलते, तो पहाड़ की पूजा करनी चाहिए। यह दर्शाता है कि मूर्ति पूजा शास्त्र के अनुसार नहीं है और इसे छोड़ देना चाहिए।

 4. ‘ओम’ मंत्र की महिमा

   - श्री देवी महापुराण के अनुसार, 'ओम' का स्मरण ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराता है, लेकिन गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में यह भी कहा गया है कि ब्रह्मलोक में भी पुनर्जन्म का चक्र जारी रहता है।

 5. ध्यान और मेडिटेशन की सच्चाई

   - गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में कहा गया है कि शास्त्रविहित साधना का त्याग कर ध्यान या मेडिटेशन करना, आसुरी स्वभाव का प्रतीक है। यह शरीर और आत्मा को कमजोर करता है।

 6. पाप नाश की वास्तविक विधि

   - संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, यजुर्वेद और ऋग्वेद में यह प्रमाणित है कि परमेश्वर हमारे पापों का नाश कर सकते हैं, जो कि अन्य साधना विधियों में संभव नहीं है।

 7. राधे-राधे बोलने का शास्त्रीय प्रमाण

   - गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में 'ओम तत सत' के मंत्रों से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख है, लेकिन 'राधे-राधे' बोलने का कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं है। यह केवल एक मनगढ़ंत विश्वास है।

 8. शास्त्रों के सही अर्थ समझने की जरूरत

   - हमारे धर्मगुरु गीता और वेदों का वास्तविक अर्थ समझने में विफल रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान आपको शास्त्रों का सही अर्थ समझने में मदद करेगा।

हमारी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप स्वयं अपने पवित्र ग्रंथों को पढ़ें और संत रामपाल जी महाराज के सत्संग को सुनकर सही मार्गदर्शन प्राप्त करें। बिना शास्त्रों के सही ज्ञान के, हम सही साधना पद्धति का पालन नहीं कर सकते और मोक्ष प्राप्ति असंभव है।

FAQs 

1. क्या गीता में व्रत रखने की मनाही है?
   - हां, गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत रखने की मनाही की गई है। इसमें कहा गया है कि व्रत रखने वालों की साधना सफल नहीं होती, क्योंकि यह शास्त्रों के अनुरूप नहीं है।

2. गीता के अनुसार पितृ पूजा करना सही है या गलत?
   - गीता अध्याय 9 श्लोक 25 के अनुसार, पितृ पूजा करना गलत है। यह कहा गया है कि पितृ पूजा करने वाले यमलोक में पितरों को प्राप्त होते हैं, और मोक्ष नहीं पा सकते।

3. मूर्ति पूजा के बारे में गीता क्या कहती है?
   - गीता में सीधे तौर पर मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह शास्त्रों के अनुसार नहीं मानी जाती है। कबीर साहेब ने इसे व्यर्थ बताया है।

4. गीता अध्याय 6 श्लोक 16 का अर्थ क्या है?
   - गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में कहा गया है कि अत्यधिक खाने वाले, व्रत रखने वाले, अधिक सोने वाले या जागने वाले की साधना सफल नहीं होती। यह संतुलित जीवन की आवश्यकता पर जोर देता है।

5. कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा के बारे में क्या कहा है?
   - कबीर साहेब ने मूर्ति पूजा को गलत ठहराया है। उनके अनुसार, अगर पत्थर की पूजा से भगवान मिलते, तो पहाड़ की पूजा करनी चाहिए थी। उन्होंने इसे एक व्यर्थ की प्रथा बताया है।

6. क्या 'राधे-राधे' बोलने से आध्यात्मिक लाभ होता है?
   - 'राधे-राधे' बोलने का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है। गीता में इसका कोई उल्लेख नहीं है। इसके बजाय, गीता में 'ओम तत सत' मंत्रों का महत्व बताया गया है।

7. ओम मंत्र से मोक्ष प्राप्ति का क्या प्रमाण है?
   - श्री देवी महापुराण में 'ओम' मंत्र की महिमा का वर्णन है, जो ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराता है। लेकिन गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा गया है कि ब्रह्मलोक में भी पुनर्जन्म होता है।

8. पाप नाश के लिए वेदों में क्या कहा गया है?
   - यजुर्वेद और ऋग्वेद में बताया गया है कि परमेश्वर हमारे पापों का नाश कर सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने इस तथ्य का उल्लेख किया है।

9. क्या ध्यान (मैडिटेशन) शास्त्रों के अनुसार सही है?
   - गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 के अनुसार, शास्त्रविधि को त्यागकर ध्यान (मैडिटेशन) करना आसुरी स्वभाव का प्रतीक है और यह शास्त्रों के विरुद्ध है।

10. संत रामपाल जी महाराज के सत्संग के बारे में जानकारी कहां मिलेगी?
    - संत रामपाल जी महाराज के सत्संग की जानकारी और उनके प्रवचन इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। आप उनके अनुयायियों के माध्यम से या उनके आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर इसे प्राप्त कर सकते हैं।

11. क्या गीता में कहा गया है कि ब्रह्मलोक में भी पुनर्जन्म होता है?
    - हां, गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा गया है कि ब्रह्मलोक में भी साधकों का पुनर्जन्म होता है, इसलिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्मलोक भी अंतिम स्थान नहीं है।

12. गीता के अनुसार कौन सी साधना सही है?
    - गीता में 'ओम तत सत' मंत्रों का जाप करने की सलाह दी गई है और शास्त्रों के अनुसार साधना करने पर जोर दिया गया है। मनमानी पूजा और साधनाओं को गीता में अस्वीकार किया गया है।

13. गीता में किस प्रकार की पूजा का वर्णन है?
    - गीता में शास्त्रानुसार पूजा का महत्व बताया गया है। इसमें 'ओम तत सत' मंत्रों का जप, सही साधना और सच्चे ज्ञान पर आधारित पूजा का उल्लेख है।

14. क्या पितृ पूजा करने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है?
    - नहीं, गीता अध्याय 9 श्लोक 25 के अनुसार, पितृ पूजा करने से मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। इसके बजाय, यह यमलोक में पितरों के साथ पुनर्जन्म का कारण बनती है।

15. गीता के किस श्लोक में व्रत रखने की मनाही की गई है?
    - गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत रखने की मनाही की गई है, जिसमें अत्यधिक खाने या बिल्कुल न खाने वालों की साधना को असफल बताया गया है।

16. संत रामपाल जी महाराज का सत्संग कैसे सुनें?
    - संत रामपाल जी महाराज का सत्संग आप उनके अनुयायियों से, उनके आधिकारिक वेबसाइट से, या YouTube जैसे प्लेटफार्मों पर ऑनलाइन सुन सकते हैं।

17. क्या गीता में किसी अन्य देवता की पूजा का उल्लेख है?
    - गीता में किसी भी अन्य देवता की पूजा का उल्लेख नहीं है। इसमें कहा गया है कि केवल एक ही परमात्मा की पूजा करनी चाहिए।

18. गीता अध्याय 9 श्लोक 25 का क्या मतलब है?
    - गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में कहा गया है कि जो पितरों की पूजा करता है, वह पितरों को प्राप्त होता है; जो भूतों की पूजा करता है, वह भूतों को प्राप्त होता है। केवल भगवान की पूजा करने वाला ही उन्हें प्राप्त कर सकता है।

19. गीता के अनुसार किस प्रकार का ध्यान शास्त्रविरुद्ध है?
    - गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 के अनुसार, शास्त्रविहित साधना को त्यागकर किया गया ध्यान (मैडिटेशन) शास्त्रविरुद्ध है और इसे आसुरी स्वभाव का प्रतीक माना गया है।

20. क्या वेदों में पाप नाश की विधि बताई गई है?
    - हां, वेदों में पाप नाश की विधि बताई गई है। यजुर्वेद और ऋग्वेद में कहा गया है कि परमेश्वर पापों का नाश कर सकते हैं.


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