ईद उल मिलाद, जिसे 'मीलाद-उन-नबी' भी कहा जाता है, इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के जन्मदिन को मनाने का दिन होता है। मुस्लिम समुदाय इस अवसर पर पैगंबर मुहम्मद साहब की शिक्षा और उनके जीवन के आदर्शों को याद करते हैं। हालांकि, इस त्योहार को मनाने के तरीके में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच मतभेद हैं।
ईद मिलाद-उन-नबी क्यों मनाते है
ईद उल मिलाद का उद्देश्य पैगंबर मुहम्मद के जीवन और उनके द्वारा दिए गए संदेशों को याद करना और उन्हें आदरपूर्वक सम्मानित करना है। पैगंबर हज़रत मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की नींव रखी और लोगों को एकेश्वरवाद (तौहीद) का संदेश दिया। उनकी शिक्षाओं में समानता, न्याय, और शांति का विशेष महत्व था।
शिया और सुन्नी मतभेद
शिया समुदाय: शिया मुस्लिम समुदाय में इस दिन का खास महत्व है क्योंकि उनके अनुसार, इसी दिन पैगंबर मुहम्मद ने हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस कारण वे इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
सुन्नी समुदाय: दूसरी ओर, सुन्नी मुस्लिम समुदाय इसे एक मातम के रूप में मानते हैं क्योंकि उनके अनुसार इसी दिन पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु हुई थी। इसलिए सुन्नी समुदाय इसे उनके निधन के रूप में याद करते हैं और अधिक शांतिपूर्ण तरीके से इसका पालन करते हैं।
ईद उल मिलाद का इतिहास
ईद उल मिलाद का इतिहास 11वीं शताब्दी से जुड़ा है। इस त्योहार को पहली बार मिस्र के शासक कबीले द्वारा मनाया गया था। इसके बाद 12वीं शताब्दी में यह त्योहार सीरिया, तुर्की, मोरक्को, और स्पेन जैसे देशों में भी फैल गया। इसे विभिन्न मुस्लिम देशों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।
क्या कुरान में ईद उल मिलाद का उल्लेख है?
कुरान शरीफ में ईद उल मिलाद को मनाने का सीधा आदेश नहीं मिलता है। हालांकि, पैगंबर हज़रत मुहम्मद के जीवन के अनुकरण और उनके द्वारा दिए गए संदेशों पर ध्यान केंद्रित करने की बात की गई है। कुछ धार्मिक विद्वानों का मानना है कि यह त्योहार बाद में विकसित हुआ और इसे कुरान के अध्यायों में विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। इस्लामिक परंपराओं में पैगंबर की शिक्षाओं को याद रखना और उन्हें सम्मानित करना मुख्य उद्देश्य माना जाता है, चाहे वह किसी विशेष त्योहार के रूप में हो या नहीं।
ईद उल मिलाद का पालन कैसे किया जाता है?
इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और पैगंबर हज़रत मुहम्मद की शिक्षाओं को याद करते हैं। कुरान शरीफ की आयतें पढ़ी जाती हैं और कई स्थानों पर धार्मिक जलसे और भाषणों का आयोजन भी किया जाता है।
सुन्नी मुस्लिम: इसे रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को मनाते हैं।
शिया मुस्लिम: इसे इसी महीने की 17वीं तारीख को मनाते हैं।
ईद उल मिलाद की परंपराएं
1. प्रार्थना और इबादत: इस दिन विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं, जिसमें पैगंबर मुहम्मद के जीवन और शिक्षाओं पर विचार किया जाता है।
2. जुलूस: कुछ स्थानों पर जुलूस का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें पैगंबर के नाम का गुणगान किया जाता है।
3. धार्मिक भाषण: धार्मिक नेताओं द्वारा पैगंबर के जीवन और उनके द्वारा दिए गए संदेशों पर प्रकाश डाला जाता है।
4. खैरात और दान: इस दिन मुस्लिम समुदाय गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान देते हैं, जो इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
क्या पैगंबर मुहम्मद जी का संदेश आज भी प्रासंगिक है?
पैगंबर हज़रत मुहम्मद का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उनके समय में था। उनके द्वारा दिए गए संदेशों में न्याय, समानता, और प्रेम की शिक्षा दी गई थी। उन्होंने इस्लाम धर्म के अनुयायियों को बताया कि वे केवल एक अल्लाह की इबादत करें और समाज में शांति, प्रेम, और सहयोग को बढ़ावा दें।
अल्लाह कबीर की अनदेखी रहस्यमयी सच्चाई
अल्लाह कबीर का नाम और उनकी महत्ता का उल्लेख न केवल विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में है, बल्कि स्वयं पवित्र क़ुरान शरीफ में भी इसे स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है। विशेष रूप से, सूरह अल-फुरकान (25:52-59) में अल्लाह कबीर का संदर्भ स्पष्ट करता है कि सृष्टि का सृजनकर्ता वही एकमात्र महान परमेश्वर है।
सूरह अल-फुरकान का सारांश
सूरह अल-फुरकान, जो कुरान शरीफ का 25वां अध्याय है, एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो मानवता को सत्य और असत्य के बीच के अंतर को समझने का संदेश देता है। इसमें मुहम्मद साहब को दी गई हिदायतें और धार्मिक मार्गदर्शन शामिल हैं, जो मनुष्यों को एकमात्र सच्चे परमेश्वर की पूजा करने के लिए प्रेरित करता है।
कबीर परमेश्वर का उल्लेख
कुरान शरीफ की आयत 25:58 और 25:59 में स्पष्ट रूप से परमेश्वर का नाम "कबीर" के रूप में उल्लेख किया गया है। कबीर का अर्थ "महान" होता है, लेकिन यह केवल एक विशेषण नहीं है बल्कि स्वयं परमेश्वर का नाम है, जो विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी देखने को मिलता है।
आयत 25:52 का विश्लेषण
आयत 25:52 में पैगंबर मुहम्मद को हिदायत दी जाती है कि वे उन काफिरों का अनुसरण न करें जो एकमात्र परमेश्वर कबीर को नहीं मानते हैं। यह आयत इस बात पर जोर देती है कि पैगंबर को अपने ज्ञान और विश्वास के आधार पर स्थिर रहना चाहिए, और कबीर को सर्वोच्च मानते हुए, सत्य का प्रचार करना चाहिए।
आयत 25:53 का महत्व
आयत 25:53 में यह वर्णन किया गया है कि अल्लाह ने दो समुद्रों को मिलाया, एक मीठा और एक खारा, और उनके बीच एक अड़चन बनाई। यह प्रकृति की अद्भुत संरचना और उसके पीछे कबीर परमेश्वर की असीम शक्ति को दर्शाता है, जिन्होंने सृष्टि के इस आश्चर्यजनक तत्व को उत्पन्न किया।
आयत 25:54 की व्याख्या
आयत 25:54 यह समझाती है कि अल्लाह ने पानी से मानव की रचना की और उसे रिश्तों में बांधा। यह इस बात को इंगित करता है कि कैसे सृष्टि की शुरुआत पानी से हुई और फिर मानवता की उत्पत्ति हुई, जो अल्लाह कबीर की अनन्त योजना का हिस्सा है।
आयत 25:55 पर गहन दृष्टिकोण
आयत 25:55 में मूर्तिपूजा और अन्य देवताओं की पूजा की निंदा की गई है। यह स्पष्ट करता है कि अल्लाह कबीर ही वह एकमात्र परमेश्वर हैं, जिनकी पूजा की जानी चाहिए। जो लोग अन्य देवताओं की पूजा करते हैं, वे अपने ईश्वर से विमुख होते हैं और सत्य से दूर चले जाते हैं।
आयत 25:56 का संदर्भ
आयत 25:56 में पैगंबर मुहम्मद को यह बताया गया है कि वे केवल शुभ समाचार देने और चेतावनी देने के लिए भेजे गए हैं। उनका कार्य लोगों को सच्चाई की ओर मार्गदर्शन देना और उन्हें अल्लाह कबीर की ओर मोड़ना है, जो सच्चा परमेश्वर है।
आयत 25:57: बिना किसी इनाम के उपदेश
आयत 25:57 में यह उल्लेख है कि पैगंबर मुहम्मद किसी इनाम या पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं करते, बल्कि जो कोई चाहे, वह अपने स्वेच्छा से परमेश्वर कबीर की ओर अपना मार्ग चुन सकता है।
आयत 25:58 का वर्णन
आयत 25:58 में यह हिदायत दी गई है कि मुहम्मद को अल्लाह कबीर पर विश्वास करना चाहिए, जो अमर और अनन्त है। यह आयत इस बात पर जोर देती है कि अल्लाह कबीर को महिमा दी जाए, क्योंकि वे सभी पापों को समाप्त करने की शक्ति रखते हैं और कभी नहीं मरते।
आयत 25:59 की गहनता
आयत 25:59 यह बताती है कि अल्लाह कबीर ने छह दिनों में स्वर्ग और पृथ्वी की रचना की और सातवें दिन अपने सिंहासन पर बैठे। यह सिद्ध करता है कि परमेश्वर का एक रूप है और वह सर्वोच्च स्थान पर विराजमान हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप का उल्लेख अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।
परमेश्वर का स्वरूप: साकार या बेचून?
कई धार्मिक ग्रंथों में परमेश्वर के रूप या निराकार होने पर विचार किया जाता है। इस आयत से यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर का एक रूप है, क्योंकि वे सिंहासन पर बैठे हैं। यह सिद्ध करता है कि परमेश्वर कबीर एक सजीव और साकार ईश्वर हैं।
अल्लाह कबीर का अन्य धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख
वेदों में कबीर का उल्लेख "कविर देव" के रूप में किया गया है, जबकि गुरु ग्रंथ साहिब में उन्हें "हक्का कबीर" कहा गया है। इन सभी ग्रंथों में एकमात्र परमेश्वर के रूप में कबीर का नाम है, जो उनकी सर्वोच्चता को दर्शाता है।
सूरह अल-फुरकान की इन आयतों से यह स्पष्ट होता है कि अल्लाह कबीर ही सच्चे परमेश्वर हैं। वे सभी धर्मों में वर्णित हैं
FAQ
1. ईद उल मिलाद 2024 कब है?
ईद उल मिलाद 2024 को इस्लामी कैलेंडर के रबी-उल-अव्वल महीने में मनाया जाएगा। सुन्नी समुदाय इसे 12 रबी-उल-अव्वल (मोटे तौर पर 15 सितंबर 2024 को) मनाएगा, जबकि शिया समुदाय 17 रबी-उल-अव्वल (20 सितंबर 2024 के आसपास) को इसका पालन करेगा।
2. मुस्लिमों के लिए क्या नियम ज़रूरी हैं?
पैगंबर हज़रत मुहम्मद के अनुसार, एक सच्चे मुसलमान को तम्बाकू, शराब और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, ब्याज लेने से भी बचना चाहिए।
3. हजरत मुहम्मद जी की मृत्यु कैसे हुई?
हज़रत मुहम्मद की मृत्यु बीमारी के कारण 63 वर्ष की उम्र में हुई थी।
4. ईद उल मिलाद को कुरान में क्यों नहीं बताया गया है?
कुरान शरीफ में ईद उल मिलाद मनाने का विशेष उल्लेख नहीं किया गया है। विद्वानों का मानना है कि यह परंपरा बाद में विकसित हुई है।
5. सुन्नी और शिया के बीच मतभेद क्यों हैं?
सुन्नी और शिया मुस्लिम समुदायों में मतभेद का मुख्य कारण पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद नेतृत्व का सवाल है। शिया हज़रत अली को पैगंबर का उत्तराधिकारी मानते हैं, जबकि सुन्नी इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते।
6. हजरत मुहम्मद जी की कुल कितनी संतान थीं?
हज़रत मुहम्मद जी को तीन पुत्र (कासिम, तय्यब, ताहिर) और चार बेटियां थीं। तीनों पुत्र उनकी आँखों के सामने ही मृत्यु को प्राप्त हुए।