शारदीय नवरात्रि उदया तिथि के हिसाब से 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से आरंभ हो रही है, जो 12 अक्टूबर 2024 , शनिवार को समाप्त हो रही है।
दुर्गा अष्टमी 2024 कब है? (Durga Ashtami 2024 Date)
दुर्गा अष्टमी आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल दुर्गा अष्टमी 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है. उस दिन कन्या पूजा की जाएगी.
कब है महानवमी 2024? (Maha Navami 2024 Date)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल महानवमी 11 अक्टूबर को मनाई जा रही है।
क्या देवी दुर्गा सर्वोच्च ईश्वर हैं?
तीनों देवताओं की माता, दुर्गा, काल ब्रह्म की पत्नी हैं। यह बात रुद्र संहिता, श्री शिव महापुराण, और श्री दुर्गा पुराण के तीसरे स्कंध में भी कही गई है।
अथर्ववेद के कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 5 में बताया गया है कि आदि भवानी अष्टांगी दुर्गा का जन्म परमेश्वर की इच्छा से हुआ था और वह काल ब्रह्म से उत्पन्न हुए जीवों को जीवित रहने का आदेश देती है। यह स्पष्ट करता है कि दुर्गा भी सर्वोच्च ईश्वर नहीं हैं, क्योंकि वे भी जन्म लेती हैं और काल के अधीन हैं।
अनुक्रमणिका
1. नवरात्रि और गलत धार्मिक प्रथाएं
2. क्या नवरात्रि के दौरान पालन की जाने वाली पूजा भगवद गीता और वेदों के अनुरूप है?
3. क्या दुर्गा जी विवाहित हैं और उनके बच्चे हैं?
4. क्या दुर्गा जी ने किसी और की पूजा का संकेत दिया है?
5. क्या दुर्गा जी हमें मोक्ष दे सकती हैं?
6. परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और रोग नष्ट कर सकता है?
7. यह सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान कौन दे रहा है?
8.नवरात्रि के दौरान उपवास और गरबा नृत्य
नवरात्रि और गलत धार्मिक प्रथाएं
भारत में नवरात्रि (नौ रातें) का त्योहार देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है। इसे आमतौर पर अश्विन मास में, जो सितंबर और अक्टूबर के महीनों में आता है, मनाया जाता है। लोग पंडाल लगाते हैं, उन्हें सजाते हैं, पूजा करते हैं, और गरबा तथा डांडिया जैसे कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इसे धर्म की पुनः स्थापना के लिए देवी दुर्गा की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। नवरात्रि की हर रात के लिए एक अलग कहानी होती है।
क्या नवरात्रि के दौरान पालन की जाने वाली पूजा भगवद गीता और वेदों के अनुरूप है?
दुर्गा पूजा के दौरान भक्त देवी दुर्गा की मूर्ति को स्नान कराते हैं, सुंदर वस्त्र पहनाते हैं, श्रृंगार करते हैं, और उन्हें आभूषणों से सजाते हैं। फिर मूर्ति को फूलों की माला और स्वादिष्ट भोजन, फल, और मिठाइयों की थाली 'भोग' के रूप में अर्पित की जाती है। यह पूरी प्रक्रिया मूर्ति पूजा का हिस्सा है। भगवद गीता और वेदों में कहीं भी मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं किया गया है। भगवद गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार, जो लोग पवित्र शास्त्रों के निर्देशों के विपरीत पूजा करते हैं, उन्हें न तो सुख मिलता है, न कोई आध्यात्मिक शक्ति और न ही मोक्ष प्राप्त होता है। इसका अर्थ है कि यह पूजा पूर्णतः निरर्थक है। इससे स्पष्ट होता है कि दुर्गा पूजा हमारे शास्त्रों के अनुसार नहीं है।
क्या दुर्गा जी विवाहित हैं और उनके बच्चे हैं?
दुर्गा जी को अक्सर भारतीय विवाहित महिला की तरह सिंदूर में सजी हुई दिखाया जाता है। बहुत कम लोग उनके पति का नाम जानते हैं। जब पूछा जाता है, तो तुरंत उत्तर शिव होता है। लेकिन शिव उनके पति नहीं हैं। उनके पति का नाम 'क्षर-ब्रह्म' या 'ज्योति निरंजन' या 'काल' है।
कोई नहीं जानता कि काल और दुर्गा की रचना कैसे हुई और किसने की। प्रारंभ में यह सृष्टि अस्तित्व में नहीं थी। केवल परमेश्वर "सतलोक" नामक स्थान पर विद्यमान थे। उन्होंने अपनी वाणी की शक्ति से सोलह द्वीपों का निर्माण किया और फिर सोलह पुत्रों की रचना की, और प्रत्येक द्वीप को एक पुत्र को सौंपा और अपने पुत्र अचिंत को सृष्टि के निर्माण का कार्य शुरू करने का आदेश दिया।
अचिंत ने एक प्राणी की रचना की और उसका नाम अक्षर पुरुष रखा और सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया। परंतु, अक्षर पुरुष 'मान सरोवर' में जाकर सो गए।
उसके बाद, परमात्मा ने अपनी एक आत्मा (क्षर-ब्रह्म) को 'मान सरोवर' के जल से बने एक अंडे में डाल दिया। जब यह अंडा जल में जा रहा था, तो अक्षर पुरुष उसकी आवाज़ से जाग गए और अंडे पर गुस्से से घूरने लगे, जिसके परिणामस्वरूप अंडा फट गया और क्षर ब्रह्म बाहर आ गए।
क्या दुर्गा जी ने किसी और की पूजा का संकेत दिया है?
गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त देवी भागवत (स्कंद 7, अध्याय 37, पृष्ठ 56-563) में, देवी दुर्गा ने हिमालय के राजा हिमवत को सभी देवताओं से ऊपर ब्रह्म की पूजा करने की सलाह दी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से वर्णन किया है कि ब्रह्म "ब्रह्मलोक" में रहते हैं और उनका मंत्र "ॐ" है।
क्या दुर्गा जी हमें मोक्ष दे सकती हैं?
कोई भी देवता या देवी हमें मोक्ष देने में सक्षम नहीं है क्योंकि केवल सर्वोच्च भगवान – कबीर साहेब जी ही हमें मोक्ष प्रदान कर सकते हैं। केवल सर्वोच्च भगवान ही मानव के सबसे बड़े पापों को भी क्षमा करने में सक्षम हैं। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति तभी संभव है जब आपके सभी पाप क्षमा हो जाएं और आप कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाएं। कबीर साहेब कहते हैं कि हमारे सच्चे पिता सभी पापों को क्षमा कर हमें सुखी बना सकते हैं।
परमात्मा की महिमा और वेदों में वर्णित सत्य
वेदों में पूर्ण परमात्मा की अद्वितीय महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। वेद हमें परमात्मा के स्वरूप, शक्तियों और लीलाओं के बारे में बताते हैं, जो सृष्टि के समस्त जीवों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अद्वितीय हैं।
परमात्मा का पाप नाशक स्वरूप
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में कहा गया है कि परमात्मा पापों का नाशक है। कबीर साहिब इस तथ्य की पुष्टि करते हुए कहते हैं:
“कबीर, जबही सत्यनाम हृदय धरयो, भयो पापको नास।
मानौं चिनगी अग्निकी, परी पुराने घास।।”
इसका अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति सत्यनाम को अपने हृदय में धारण करता है, तो उसके सभी पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे आग की चिनगारी के संपर्क में आने पर सूखी घास जलकर राख हो जाती है।
परमात्मा आयु बढ़ा सकता है और रोग नष्ट कर सकता है
ऋग्वेद मण्डल 10 के कई मंत्र (सूक्त 161 मंत्र 2, 5; सूक्त 162 मंत्र 5; सूक्त 163 मंत्र 1-3) इस बात की पुष्टि करते हैं कि पूर्ण परमात्मा न केवल आयु को बढ़ा सकते हैं, बल्कि किसी भी रोग को भी नष्ट कर सकते हैं। यह उनकी असीम शक्ति और करुणा का प्रमाण है कि वे अपने भक्तों की रक्षा और उनके जीवन को सुखी बनाने के लिए तत्पर रहते हैं।
पूर्ण प्रभु कभी माँ से जन्म नहीं लेता
यजुर्वेद अध्याय 40 श्लोक 8 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूर्ण प्रभु कभी भी किसी माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते। इस मंत्र में परमात्मा के स्वरूप का वर्णन किया गया है:
"स पय्र्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविंद्यम्।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽ अर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।।"
इसका भावार्थ यह है कि परमात्मा नाड़ियों से बने शरीर वाला नहीं है। उनका शरीर माता-पिता के संयोग से, वीर्य से बने पंच तत्वों का नहीं है। वे स्वयंभू (स्वयं प्रकट होने वाले) हैं और उनका ज्ञान अचेद्य (जिसे तर्क से काटा नहीं जा सकता) है।
पूर्ण परमात्मा का रूप और अवतार
ऋग्वेद में कई स्थानों पर परमात्मा के रूप और अवतारों का उल्लेख है। उदाहरण के लिए, ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 में कहा गया है कि जब परमात्मा पृथ्वी पर प्रकट होते हैं, तो वे माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते। उनका शरीर पाँच तत्वों से बना नहीं होता और वे अपनी शब्द शक्ति से अपने भक्तों के दुखों का हरण करते हैं।
परमात्मा की लीला अपार है
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 4 कहता है कि परमात्मा की महिमा का आरंभ और अंत कोई नहीं जानता। उनकी शक्ति अपार है, और वे स्वयं अपनी महिमा का ज्ञान अपने भक्तों को देते हैं। वे मनुष्य रूप धारण करके पृथ्वी पर विचरण करते हैं, लेकिन स्त्री भोग नहीं करते।
पूर्ण परमात्मा का अविनाशी शरीर
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 6 के अनुसार, पूर्ण परमात्मा का शरीर अविनाशी और तेजोमय है। वे अपने भक्तों के लिए पूजा करने योग्य हैं, और उनकी प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताए गए भक्ति मार्ग से ही संभव है। यह मंत्र यह भी इंगित करता है कि पूर्ण परमात्मा का शरीर किसी भी नश्वरता से परे है और वे स्वयं प्रकाशित हैं।
पूर्ण परमात्मा का तत्वज्ञान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 1-2 में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा दोनों स्थानों पर निवास करते हैं - सत्यलोक में भी और पृथ्वी लोक पर भी। वे कभी भी माता से जन्म नहीं लेते और मनुष्य रूप धारण करके पाप कर्मों का नाश करते हैं। वे शुद्ध और निर्दोष रहते हैं, और सशरीर अपने धाम में वापस जाते हैं।
परमात्मा का आगमन और उद्देश्य
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 2 में उल्लेख है कि पूर्ण परमात्मा पृथ्वी पर अपने भक्तों के उद्धार के लिए अवतरित होते हैं। वे सच्चे ज्ञान का प्रचार करते हैं और अपने भक्तों को सत्य भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। वे अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं और उन्हें संसार के दुखों से मुक्त कराते हैं।
पूर्ण परमात्मा का अमरत्व और शाश्वत स्वरूप
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 5 में कहा गया है कि परमात्मा अमर हैं और उनका स्वरूप शाश्वत है। वे सत्यलोक में निवास करते हैं और अपनी महिमा को प्रकट करने के लिए समय-समय पर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। वे अपने भक्तों को सही मार्गदर्शन देते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होते हैं।
वेदों में वर्णित उपरोक्त मंत्रों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्ण परमात्मा का स्वरूप, शक्ति और महिमा अनंत और अपार हैं। वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, उन्हें सच्चा ज्ञान प्रदान करते हैं और संसार के समस्त दुखों से मुक्ति दिलाते हैं। वे स्वयं प्रकट होते हैं और उनकी भक्ति से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। उनका स्वरूप न तो किसी माँ के गर्भ से उत्पन्न होता है, न ही वे पंच तत्वों से बने होते हैं। वे शाश्वत और अविनाशी हैं, और उनकी महिमा का कोई अंत नहीं है। वे ही सृष्टि के सर्वोच्च अधिष्ठाता और सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, जिन्हें सत्यज्ञान और भक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
यह सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान कौन दे रहा है?
आज, केवल एक सच्चे संत "संत रामपाल जी महाराज" इस सही पूजा पद्धति और शास्त्रों के सच्चे ज्ञान को दे रहे हैं। सर्वोच्च भगवान – कबीर साहेब जी के बारे में अधिक जानने के लिए, संत रामपाल जी महाराज के प्रवचनों को सुनें।
नवरात्रि के दौरान उपवास और गरबा
नवरात्रि के दौरान लोग उपवास रखते हैं और गरबा नृत्य करते हैं, लेकिन क्या यह विधियाँ भगवद गीता और वेदों के अनुसार हैं? गरबा एक लोक नृत्य है जो जन्म और मृत्यु के अनंत चक्र का प्रतीक है, जिसके केंद्र में केवल एक चीज़ शाश्वत मानी जाती है — "देवी दुर्गा"। सवाल यह उठता है कि क्या गरबा नृत्य करके आत्मा वास्तव में मोक्ष (जन्म और मृत्यु के अनंत चक्र से मुक्ति) प्राप्त कर सकती है?
भगवद गीता या वेदों में गरबा नृत्य का कोई उल्लेख नहीं है। जैसा कि पहले बताया गया है, इस तरह की पूजा पद्धति पवित्र शास्त्रों के आदेशों के विपरीत है और कभी भी मोक्ष की प्राप्ति का साधन नहीं हो सकती। यह पूजा नहीं है, बल्कि केवल मनोरंजन है। इसी प्रकार, भगवद गीता में भी किसी भी प्रकार के उपवास का निषेध है।
भगवद गीता के अध्याय 6 श्लोक 16 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो लोग बिल्कुल भी नहीं खाते, या जो ज्यादा खाते हैं, या जो बिल्कुल नहीं सोते या जो ज्यादा सोते हैं, वे कभी भी आध्यात्मिकता के मार्ग पर सफल नहीं हो सकते और न ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
इस लेख में हमने नवरात्रि के दौरान प्रचलित गलत धार्मिक प्रथाओं, देवी दुर्गा के बारे में प्रचलित धारणाओं, और सही पूजा पद्धति की आवश्यकता पर चर्चा की है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि केवल शास्त्रों के अनुसार पूजा करके ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए, सही मार्गदर्शन और सच्चे ज्ञान के लिए हमें संत रामपाल जी महाराज की शरण लेनी चाहिए।
संत रामपाल जी महाराज के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप उनके प्रवचन सुन सकते हैं या उनके आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं। Read More
FAQ:
1. नवरात्रि कब है 2024 शारदीय?
शारदीय नवरात्रि उदया तिथि के हिसाब से 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से आरंभ हो रही है, जो 12 अक्टूबर 2024 , शनिवार को समाप्त हो रही है।
2. क्या नवरात्रि के दौरान की जाने वाली पूजा भगवद गीता और वेदों के अनुसार है?
नहीं, नवरात्रि के दौरान की जाने वाली पूजा, जैसे मूर्ति पूजा, भगवद गीता और वेदों के अनुसार नहीं है। भगवद गीता के अध्याय 16, श्लोक 23-24 के अनुसार, जो लोग पवित्र शास्त्रों के निर्देशों के विपरीत पूजा करते हैं, उन्हें न तो सुख मिलता है, न कोई आध्यात्मिक शक्ति और न ही मोक्ष प्राप्त होता है।
3. क्या दुर्गा जी विवाहित हैं, और उनके बच्चे कौन हैं?
जी हाँ, दुर्गा जी विवाहित हैं। उनके पति का नाम 'क्षर-ब्रह्म' या 'ज्योति निरंजन' या 'काल' है। उनके तीन बच्चे हैं – ब्रह्मा, विष्णु और शिव। यह जानकारी वेदों, पुराणों, और अन्य शास्त्रों में दी गई है।
4. क्या देवी दुर्गा ने किसी अन्य देवता की पूजा का संकेत दिया है?
हाँ, संक्षिप्त देवी भागवत के अनुसार, देवी दुर्गा ने हिमालय के राजा हिमवत को ब्रह्म की पूजा करने का संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि ब्रह्म "ब्रह्मलोक" में निवास करते हैं और उनका मंत्र "ॐ" है।
5. क्या दुर्गा जी हमें मोक्ष दे सकती हैं?
नहीं, दुर्गा जी या कोई अन्य देवता मोक्ष प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं। केवल सर्वोच्च भगवान – कबीर साहेब जी ही मोक्ष दे सकते हैं, क्योंकि केवल वही हमारे सभी पापों को क्षमा कर सकते हैं। यह यजुर्वेद के अध्याय 8, मंत्र 13 में बताया गया है।
6. क्या गरबा नृत्य और नवरात्रि के दौरान उपवास करना शास्त्रों के अनुसार है?
नहीं, गरबा नृत्य और उपवास का कोई उल्लेख भगवद गीता या वेदों में नहीं है। ये पूजा पद्धतियाँ शास्त्रों के आदेशों के विपरीत हैं और मोक्ष की प्राप्ति का साधन नहीं हो सकतीं। भगवद गीता के अध्याय 6, श्लोक 16 में भी उपवास का निषेध किया गया है।
7. यह सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान कौन दे रहा है?
वर्तमान में, सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान और सही पूजा पद्धति का मार्गदर्शन संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिया जा रहा है। उन्होंने शास्त्रों के साक्ष्यों के आधार पर सही पूजा पद्धति की जानकारी दी है।
8. संत रामपाल जी महाराज किस प्रकार की पूजा का प्रचार कर रहे हैं?
संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों के अनुसार सर्वोच्च भगवान – कबीर साहेब जी की पूजा का प्रचार कर रहे हैं, जो हमें मोक्ष की प्राप्ति और सभी पापों से मुक्ति दिला सकते हैं।
9. क्या नवरात्रि के दौरान उपवास करना आवश्यक है?
नहीं, नवरात्रि के दौरान उपवास करना आवश्यक नहीं है। भगवद गीता में भी उपवास का निषेध है, और शास्त्रों के अनुसार, ऐसी पूजा पद्धतियाँ मोक्ष की प्राप्ति में सहायक नहीं होतीं।