Janm aur Mrityu Kyu Hoti hai | जन्म और मृत्यु क्यों होती हैं जाने इस चक्र से कैसे बचें

हम सभी जानते हैं कि इस संसार में जो भी जन्म लेता है, वह एक दिन अवश्य मरता है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हम जन्म क्यों लेते हैं और मरते क्यों हैं, जबकि हम में से कोई भी मरना नहीं चाहता? यह जन्म और मृत्यु का चक्र एक अपरिहार्य सत्य है, लेकिन इसके पीछे का रहस्य क्या है? आज हम आपको इस गूढ़ सत्य से अवगत कराएँगे कि हम क्यों जन्म लेते हैं, मरते हैं और इस चक्र से बचने का उपाय क्या है।

Janm aur Mrityu Kyu Hoti hai | जन्म और मृत्यु क्यों होती हैं जाने इस चक्र से कैसे बचें



काल का परिचय और उसकी सृष्टि का निर्माण

काल (ज्योति निरंजन/शैतान) वह शक्ति है जिसने इस संसार को बंधन में जकड़ रखा है। काल को कई धर्मों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है: हिंदू धर्म में इसे ब्रह्म या क्षर पुरुष कहा गया है, ईसाई धर्म में इसे शैतान कहते हैं, और इस्लाम में इसे शैतान या इब्लीस कहा जाता है। ये सभी नाम उस ही एक दुष्ट शक्ति को संदर्भित करते हैं, जो आत्माओं को जन्म और मृत्यु के चक्र में फँसाए रखती है।

इस ब्रह्माण्ड की रचना पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव ने की थी। उन्होंने सृष्टि के आरम्भ में अपनी वचन शक्ति से काल का निर्माण किया। काल, जिसका मूल नाम कैल था, सतलोक में रहता था, लेकिन अपने दुराचार के कारण उसे सतलोक से निष्कासित कर दिया गया और उसका नाम 'काल' रख दिया गया। काल को 21 ब्रह्माण्ड प्रदान किए गए, जहाँ उसने अपनी सृष्टि रचना शुरू की।

आत्माओं का पतन: सतलोक से काल के जाल में

सतलोक वह शाश्वत स्थान है, जहाँ हर आत्मा आनंद और शांति में निवास करती थी। लेकिन समय के साथ, कुछ आत्माएँ अपने असली स्वामी पूर्णब्रह्म से विमुख होकर काल (ज्योति निरंजन) की तपस्या की ओर आकर्षित हो गईं। यह आकर्षण इतना प्रबल हो गया कि आत्माएँ अपने पिता परमात्मा के चेतावनी के बावजूद काल के साथ जाने को तैयार हो गईं। इसी कारण से वे सतलोक से गिरकर काल के 21 ब्रह्माण्डों में फँस गईं और इस संसार के दुखों और कष्टों में उलझ गईं।

काल ने अपनी त्रिगुणमयी माया से इस संसार में रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण के माध्यम से आत्माओं को भ्रमित किया और उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र में फँसा लिया। यह संसार काल का एक विशाल पिंजरा है, जहाँ हर आत्मा कर्मों के बंधन में बंधी हुई है।

काल की सृष्टि में आत्माओं का कष्ट

काल को प्रतिदिन एक लाख मानव शरीरों की मैल खाने का श्राप है, और वह प्रतिदिन सवा लाख नए जीवों का निर्माण करता है। इसलिए, वह नहीं चाहता कि कोई भी आत्मा उसके ब्रह्माण्ड से बचकर सतलोक वापस जाए। यही कारण है कि काल ने इस संसार में अनेक जाल बिछाए हैं, ताकि आत्माएँ मोक्ष प्राप्त न कर सकें और उसकी सृष्टि में फँसी रहें।

कर्मों का जाल : 

काल ने आत्माओं को कर्मों के जाल में उलझा रखा है। यहाँ हर व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और मरता है। अच्छे कर्म करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और बुरे कर्मों के कारण नरक का अनुभव करना पड़ता है। लेकिन यह स्वर्ग और नरक भी काल के ही ब्रह्माण्ड का हिस्सा हैं, जहाँ आत्मा कभी भी पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाती।

त्रिगुणमयी माया : 

काल ने इस संसार में त्रिगुणमयी माया का जाल बिछाया है, जिसमें रजोगुण (रचना), तमोगुण (संहार) और सतोगुण (पालन) के माध्यम से आत्माएँ भ्रमित रहती हैं। यह माया आत्माओं को इस संसार के मोह-माया में फँसाए रखती है, जिससे वे कभी भी सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर पातीं और जन्म-मरण के चक्र में फँसी रहती हैं।

जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का मार्ग

सच्चे संत की शरण : इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय है सच्चे संत की शरण में जाना और उनके द्वारा प्रदत्त सतज्ञान को समझना। संत रामपाल जी महाराज ने उस सच्चे ज्ञान को प्रकट किया है, जो आम लोगों के लिए अज्ञात था। उन्होंने बताया कि केवल सतज्ञान और सच्ची भक्ति के माध्यम से ही आत्मा इस काल के जाल से मुक्त हो सकती है।

सतनाम और सारनाम : 

संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, "सतनाम" और "सारनाम" का जाप करने से आत्मा की शुद्धि होती है और वह काल के बंधनों से मुक्त हो जाती है। सतनाम का सांकेतिक नाम ॐ तत है, जो कि एक पवित्र मंत्र है। सारनाम का सांकेतिक नाम ॐ तत सत है, जो परमात्मा का मूल नाम है और इसे गुरु शिष्य को दीक्षा के समय प्रदान करते हैं। इन मंत्रों का नियमित जाप आत्मा को शुद्ध करता है और उसे सतलोक की ओर अग्रसर करता है।

भगवद गीता के मंत्र : 

भगवद गीता के अध्याय 17:23 में तीन स्तर के मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाते हैं। ये मंत्र "ॐ", "तत", और "सत" हैं। 

- ॐ : यह मंत्र ब्रह्म लोक की प्राप्ति कराता है।
- तत : यह अक्षर पुरुष के लोक की प्राप्ति कराता है, जहाँ जन्म-मरण का चक्र तो चलता है लेकिन इसकी अवधि बहुत लंबी होती है।
- सत : यह मंत्र पूर्ण ब्रह्म के लोक सतलोक की प्राप्ति कराता है, जहाँ आत्मा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करती है और जन्म-मरण के चक्र से हमेशा के लिए मुक्त हो जाती है।

जन्म-मरण के चक्र से बाहर निकलने का सही तरीका

इस संसार में जन्म और मृत्यु का चक्र काल की सृष्टि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर आत्मा इस चक्र में फँसी हुई है और तब तक मुक्त नहीं हो सकती जब तक उसे सच्चे ज्ञान और सच्चे संत की शरण नहीं मिलती। संत रामपाल जी महाराज ने इस ज्ञान को प्रकट किया है, जिससे हम इस चक्र से मुक्त होकर अपने सच्चे स्थान सतलोक में लौट सकते हैं।

जीवन का वास्तविक उद्देश्य सतगुरु से दीक्षा लेकर सच्ची भक्ति करना है, जिससे आत्मा जन्म-मरण के इस चक्र से मुक्त होकर सतलोक में परम शांति और आनंद प्राप्त कर सके। इस प्रकार, हम न केवल इस संसार के दुखों से मुक्ति पा सकते हैं, बल्कि सच्चे आनंद और शाश्वत शांति को भी प्राप्त कर सकते हैं।

FAQs 

1. जन्म और मृत्यु का कारण क्या है?
   - जन्म और मृत्यु जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह कर्मों का फल है, और आत्मा का अनुभव करने के लिए इस संसार में प्रवेश करती है।

2. मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?
   - विभिन्न धर्मों में इसके अलग-अलग विचार हैं। अधिकांश मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा का पुनर्जन्म होता है या वह स्वर्ग, नरक, या किसी अन्य लोक में जाती है, यह उसके कर्मों पर निर्भर करता है।

3. क्या हम जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकते हैं?
   - हाँ, आध्यात्मिक गुरुओं के अनुसार, सही ज्ञान, सच्ची भक्ति, और एक सच्चे गुरु की शरण में जाने से आत्मा इस चक्र से मुक्त हो सकती है और अपने शाश्वत निवास स्थान सतलोक में पहुँच सकती है।

4. काल (ज्योति निरंजन) कौन है?
   - आध्यात्मिक शिक्षाओं के अनुसार, काल वह शक्ति है जिसने आत्माओं को जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसा रखा है। यह सृष्टि का निर्माता और पालनकर्ता है, लेकिन यह आत्माओं को मोक्ष से दूर रखता है।

5. सतलोक क्या है?
   - सतलोक एक शाश्वत स्थान है, जहाँ आत्मा शांति और आनंद में निवास करती है। यह परमात्मा का निवास स्थान है और यहाँ जाने के बाद आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है।

6. सच्चा संत कौन है?
   - सच्चा संत वह है जो पूर्ण ज्ञान रखता है और आत्माओं को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करने का मार्ग दिखाता है। उदाहरण के लिए, संत रामपाल जी महाराज को सच्चा संत माना जाता है, जिन्होंने सतज्ञान का प्रचार किया है।

7. सतनाम और सारनाम का क्या महत्व है?
   - सतनाम और सारनाम का जाप करने से आत्मा की शुद्धि होती है और वह काल के बंधनों से मुक्त होकर सतलोक की ओर अग्रसर होती है। यह मंत्र सच्चे गुरु से दीक्षा के समय प्राप्त किया जाता है।

8. क्या गीता में जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का कोई तरीका बताया गया है?
   - हाँ, भगवद गीता के अध्याय 17:23 में तीन मंत्रों का उल्लेख किया गया है: "ॐ", "तत", और "सत", जो अलग-अलग लोकों की प्राप्ति कराते हैं। इनमें से "सत" मंत्र सतलोक की प्राप्ति कराता है।

9. कर्मों का जीवन में क्या महत्व है?
   - कर्म व्यक्ति के जीवन का निर्धारण करते हैं। अच्छे कर्म से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और बुरे कर्म से नरक में जाना पड़ता है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा पूर्ण मोक्ष प्राप्त नहीं करती।

10. मृत्यु से डरने का क्या कारण है?
    - मृत्यु का भय अज्ञानता और इस संसार के प्रति मोह से उत्पन्न होता है। सही आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से इस भय को दूर किया जा सकता है और आत्मा को शांति मिल सकती है।


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