Aasli Bhakti vs Nakali Bhakti | जानें असली और नकली भक्ति का अंतर: शास्त्रों की नजर से

शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो असली भक्ति का प्रमुख उद्देश्य है। नकली भक्ति, जो शास्त्रों के विपरीत होती है, साधक को भटकाव की ओर ले जाती है और उसके जीवन को दुखों से भर देती है। सही मार्गदर्शन और शास्त्रों के अनुसार साधना से ही मनुष्य को जीवन का सही मार्ग प्राप्त होता है। इसलिए, सभी साधकों को शास्त्रों में वर्णित असली भक्ति का मार्ग अपनाकर जीवन में सुख और मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।

Aasli Bhakti vs Nakali Bhakti


Table Of Contents 
1. असली भक्ति और नकली भक्ति का महत्व
2. असली भक्ति की परिभाषा और उसका महत्व
3. नकली भक्ति की पहचान और उससे होने वाले नुकसान
4. शास्त्रों में प्रमाणित भक्ति विधि
   - गीता अध्याय 18 श्लोक 62: सनातन परम धाम की प्राप्ति
   - गीता अध्याय 17 श्लोक 23: असली मंत्र ‘ॐ, तत्, सत्’ का महत्व
   - ऋग्वेद के मंत्र: रोग नाश के प्रमाण
5. नकली भक्ति के परिणाम: शास्त्रविरुद्ध साधना से उत्पन्न कठिनाइयाँ
6. असली और नकली भक्ति में अंतर: 84 लाख योनियों का संदर्भ
7. सच्चे गुरु का महत्व और उनकी पहचान
8. धर्मगुरुओं द्वारा प्रचारित भक्ति विधियों का शास्त्रों में खंडन
   - हरे राम हरे कृष्णा, राधे-राधे, ओम नमः शिवाय जैसे मंत्रों का अभाव
9. पवित्र हिंदू शास्त्रों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की असलियत
   - देवीपुराण और शिवपुराण के प्रमाण
10. गीता में वर्णित असली भक्ति के मंत्र और धर्मगुरुओं द्वारा प्रचारित मंत्रों का तुलनात्मक अध्ययन
11. पवित्र गीता शास्त्र में पित्तर पूजा और भूत पूजा का निषेध
12. वेदों के विपरीत भक्ति करने वाले हिंदू समाज की स्थिति
13. नकली भक्ति के कारण हिंदू समाज का अधोगति
14. शास्त्रों के आधार पर सच्ची भक्ति की ओर लौटने की अपील
15.शास्त्र अनुकूल भक्ति का महत्व और मोक्ष की प्राप्ति
16.FAQs 


असली भक्ति और नकली भक्ति का महत्व

भक्ति का सही अर्थ और विधि जानना किसी भी साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए अनिवार्य भी है। संत रामपाल जी महाराज ने विभिन्न प्रमाणित शास्त्रों के आधार पर असली और नकली भक्ति का भेद स्पष्ट किया है। इस लेख में, हम शास्त्रों के प्रमाणों से असली भक्ति का महत्व समझेंगे और नकली भक्ति के दुष्प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

असली भक्ति की परिभाषा और उसका महत्व

असली भक्ति वह है, जो शास्त्रों में प्रमाणित है और साधक को मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाती है। यह भक्ति शास्त्रों के अनुरूप होती है और इसमें किसी भी प्रकार की मनमानी विधि का समावेश नहीं होता। असली भक्ति में पूर्ण गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है, जो शास्त्रों के सत्य को समझकर साधक को सही दिशा दिखाता है।

नकली भक्ति की पहचान और उससे होने वाले नुकसान

नकली भक्ति वह है, जो शास्त्रविरुद्ध है और समाज में प्रचलित है। ऐसी भक्ति विधियों का शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं है और यह साधक को भटकाव की ओर ले जाती है। नकली भक्ति के कारण साधक 84 लाख योनियों में भटकता रहता है और मोक्ष की प्राप्ति से वंचित रहता है।

शास्त्रों में प्रमाणित भक्ति विधि

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में स्पष्ट किया गया है कि शास्त्रानुकूल भक्ति से साधक सनातन परम धाम की प्राप्ति करता है। वहीं, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" मंत्रों का निर्देश दिया गया है, जो असली भक्ति के प्रतीक हैं। इन मंत्रों का जाप करके साधक मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 161 मंत्र 2, 5 में प्रमाण है कि असली भक्ति से भयंकर से भयंकर रोग भी नष्ट हो जाते हैं। ये मंत्र शास्त्रों में दिए गए हैं, जो असली भक्ति की शक्ति को दर्शाते हैं।

नकली भक्ति के परिणाम: शास्त्रविरुद्ध साधना से उत्पन्न कठिनाइयाँ

नकली भक्ति से साधक को लाभ नहीं होता। इसके बजाय, वह जीवनभर दुखों और रोगों से घिरा रहता है। गीता अध्याय 16 श्लोक 23 के अनुसार, जो साधक शास्त्रों का उल्लंघन करता है, वह भगवान से मिलने वाले लाभों से वंचित रहता है और उसका जीवन दुखमय होता है।

असली और नकली भक्ति में अंतर: 84 लाख योनियों का संदर्भ

असली भक्ति करने से साधक 84 लाख योनियों में भटकने से बच जाता है और सीधा मोक्ष की प्राप्ति करता है। वहीं, नकली भक्ति के कारण साधक योनियों में भटकता रहता है और उसे बार-बार जन्म-मरण के चक्र से गुजरना पड़ता है।

सच्चे गुरु का महत्व और उनकी पहचान

सच्चा गुरु वही होता है, जो शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान रखता है और साधक को सही दिशा में मार्गदर्शन देता है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में वर्णित सांकेतिक मंत्र 'ओम्-तत्-सत्' को सच्चा गुरु ही प्रदान कर सकता है। ऐसे गुरु के बिना असली भक्ति संभव नहीं है।

धर्मगुरुओं द्वारा प्रचारित भक्ति विधियों का शास्त्रों में खंडन

वर्तमान में समाज में प्रचलित हरे राम हरे कृष्णा, राधे-राधे, ओम नमः शिवाय जैसे मंत्र शास्त्रों में प्रमाणित नहीं हैं। ये मंत्र साधकों को भटकाव की ओर ले जाते हैं और उनका जीवन नाश कर देते हैं। असली भक्ति केवल शास्त्रों में प्रमाणित मंत्रों द्वारा ही की जानी चाहिए।

पवित्र हिंदू शास्त्रों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की असलियत

देवीपुराण और शिवपुराण के प्रमाण बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव अजर-अमर नहीं हैं। इनकी भी जन्म और मृत्यु होती है। देवीपुराण के अनुसार, दुर्गा इनकी माता है और काल ब्रह्म इनके पिता हैं। यह तथ्य शास्त्रों में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है।

गीता में वर्णित असली भक्ति के मंत्र और धर्मगुरुओं द्वारा प्रचारित मंत्रों का तुलनात्मक अध्ययन

गीता अध्याय 8 के श्लोक 13 में गीता बोलने वाला प्रभु अपनी भक्ति साधना का "ॐ" मंत्र देता है, जो ब्रह्मलोक में जाने का मार्ग है। वहीं, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" मंत्रों का निर्देश है, जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति के प्रतीक हैं। लेकिन हमारे धर्मगुरुओं द्वारा दिए गए मंत्र शास्त्रविरुद्ध हैं और उनका कोई लाभ नहीं होता।

पवित्र गीता शास्त्र में पित्तर पूजा और भूत पूजा का निषेध

गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट कहा गया है कि पित्तर पूजा, भूत पूजा और देवताओं की पूजा का कोई लाभ नहीं होता। फिर भी धर्मगुरु हिंदुओं को इसके विपरीत विधि बताकर पित्तर पूजा, भूत पूजा आदि करवा रहे हैं, जो काल का जाल है।

वेदों के विपरीत भक्ति करने वाले हिंदू समाज की स्थिति

हिंदू समाज में 80% लोग वेदों के विपरीत भक्ति कर्म करते हैं। वेदों का सर्वोत्तम ज्ञान होने के बावजूद, हिंदू समाज के अधिकांश लोगों ने वेदों को पढ़ा भी नहीं है। यह स्थिति हिंदू समाज के अधोगति का कारण है।

नकली भक्ति के कारण हिंदू समाज का अधोगति

शास्त्रों के विपरीत भक्ति विधियों के कारण हिंदू समाज का अधोगति हुआ है। वेदों और गीता के ज्ञान से अपरिचित धर्मगुरु समाज को भटकाव की ओर ले जा रहे हैं, जिससे हिंदू समाज का जीवन दुखमय हो गया है।

शास्त्रों के आधार पर सच्ची भक्ति की ओर लौटने की अपील

सभी हिंदू भाई-बहनों से अपील है कि वे शास्त्रों में वर्णित असली भक्ति विधियों को अपनाएं और नकली भक्ति से बचें। शास्त्रों के आधार पर सही मार्गदर्शन प्राप्त करें और अपने जीवन को मोक्ष की ओर अग्रसर करें।

शास्त्र अनुकूल भक्ति का महत्व और मोक्ष की प्राप्ति

सच्ची भक्ति का महत्व शास्त्रों में वर्णित है, और यह साधक को जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाती है। संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, असली भक्ति ही वह मार्ग है जो मनुष्य को 84 लाख योनियों के भटकाव से बचाकर उसे सनातन परम धाम (सतलोक) की प्राप्ति कराती है। नकली भक्ति, जो शास्त्रों के विपरीत और मनमानी होती है, साधक को न केवल दुखमय जीवन की ओर ले जाती है, बल्कि उसे मोक्ष से भी वंचित कर देती है। 

शास्त्रों के अनुसार भक्ति करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो असली भक्ति का प्रमुख उद्देश्य है। नकली भक्ति, जो शास्त्रों के विपरीत होती है, साधक को भटकाव की ओर ले जाती है और उसके जीवन को दुखों से भर देती है। सही मार्गदर्शन और शास्त्रों के अनुसार साधना से ही मनुष्य को जीवन का सही मार्ग प्राप्त होता है। इसलिए, सभी साधकों को शास्त्रों में वर्णित असली भक्ति का मार्ग अपनाकर जीवन में सुख और मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।

FAQs

1. असली भक्ति क्या है?
   - असली भक्ति वह साधना है जो शास्त्रों के अनुसार होती है। इसमें पूर्ण गुरु के मार्गदर्शन में शास्त्रों में प्रमाणित मंत्रों का जाप किया जाता है। यह साधक को मोक्ष की प्राप्ति की ओर ले जाती है और जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाती है।

2. नकली भक्ति कैसे पहचानें?
   - नकली भक्ति वह है जो शास्त्रों के विपरीत हो और समाज में प्रचलित हो। इसका शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं होता और इससे साधक को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि वह 84 लाख योनियों में भटकता रहता है।

3.क्या गीता में वर्णित मंत्र असली भक्ति के लिए पर्याप्त हैं?
   - जी हां, गीता में वर्णित मंत्र "ॐ, तत्, सत्" असली भक्ति के लिए आवश्यक हैं। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में इन मंत्रों का उल्लेख किया गया है जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति के लिए हैं।

4. सच्चे गुरु की क्या भूमिका है?
   - सच्चा गुरु वह होता है जो शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान रखता है और साधक को सही दिशा में मार्गदर्शन देता है। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में बताया गया है कि सच्चा गुरु वही है जो शास्त्रों के अनुसार साधक को भक्ति का मार्ग दिखाता है।

5. क्या हरे राम, हरे कृष्णा जैसे मंत्रों से लाभ होता है?
   - नहीं, हरे राम, हरे कृष्णा, राधे-राधे, ओम नमः शिवाय जैसे मंत्रों का शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं है, और इन्हें जाप करने से साधक को कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता।

6. गीता में पित्तर पूजा और भूत पूजा का निषेध क्यों किया गया है?
   - गीता अध्याय 9 श्लोक 25 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पित्तर पूजा, भूत पूजा और देवताओं की पूजा का कोई लाभ नहीं होता। ये साधनाएं शास्त्रों के अनुसार नहीं हैं और साधक को मोक्ष की प्राप्ति से वंचित करती हैं।


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