Atmaye kaal ke Jaal Me Kaise Phasi | आत्माएं काल के चक्र में कैसे फंसी

आध्यात्मिक ग्रंथों और संतों की वाणी में वर्णित है कि प्रत्येक आत्मा का मूल स्थान सतलोक है, जिसे सचखंड, परमधाम, अमरलोक आदि नामों से भी जाना जाता है। यह स्थान पूर्णब्रह्म, जिसे परम अक्षर ब्रह्म या कविर्देव (कबीर परमेश्वर) भी कहा जाता है, का निवास है। सतलोक में हर आत्मा शाश्वत शांति और सुख में रहती थी। परंतु समय के साथ, आत्माओं ने अपने सच्चे प्रभु से विमुख होकर क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) की तपस्या की ओर आकर्षित होना प्रारंभ कर दिया। इसी कारण से वे पतिव्रता पद से गिर गईं और काल (ज्योति निरंजन) के जाल में फंस गईं।


क्षर पुरुष की तपस्या और आत्माओं का पतन

ज्योति निरंजन, जिसे काल, ब्रह्म, क्षर पुरुष, और धर्मराय के नाम से भी जाना जाता है, ने प्रारंभ में पूर्णब्रह्म की उपासना की और 70 युगों तक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर, पूर्णब्रह्म ने उसे 21 ब्रह्माण्ड प्रदान किए। इसके बाद, ज्योति निरंजन ने सोचा कि इन ब्रह्माण्डों में जीवन उत्पन्न करने के लिए आत्माओं की आवश्यकता होगी, और उसने पूर्णब्रह्म से आत्माओं की याचना की। पूर्णब्रह्म ने कहा कि वह तपस्या के फलस्वरूप उसे और ब्रह्माण्ड दे सकते हैं, लेकिन आत्माओं को स्वेच्छा से ही उसके साथ जाने की अनुमति दी जाएगी।

ज्योति निरंजन ने हमारी आत्माओं से पूछा कि क्या हम उसके साथ उसके ब्रह्माण्ड में चलना चाहेंगे। पहले तो हम आत्माओं ने पूर्णब्रह्म के समक्ष स्वीकृति नहीं दी, परंतु जब एक आत्मा ने साहस दिखाया और सहमति दी, तो उसकी देखा-देखी सभी आत्माओं ने स्वीकृति दे दी। इस प्रकार, हम सभी आत्माएँ काल के जाल में फंस गईं और उसकी दुनिया में प्रवेश कर गईं।

प्रकृति देवी (दुर्गा) की उत्पत्ति और ब्रह्म का पाप

सभी आत्माओं को ज्योति निरंजन (काल) के साथ भेजने के बाद, पूर्णब्रह्म ने सबसे पहले स्वीकृति देने वाली आत्मा को लड़की का रूप दिया और उसका नाम आष्ट्रा (प्रकृति देवी या दुर्गा) रखा। उसे वचन शक्ति प्रदान की गई, जिससे वह ब्रह्म (ज्योति निरंजन) की इच्छा अनुसार जीवों को उत्पन्न कर सकती थी। इसके बाद, प्रकृति देवी को काल के पास भेजा गया। प्रकृति देवी का रंग-रूप बहुत सुंदर था, और ब्रह्म के भीतर उसके प्रति वासना उत्पन्न हो गई। उसने दुर्गा के साथ मैथुन (बलात्कार) का प्रयास किया। दुर्गा ने उसे समझाने का प्रयास किया कि वह अपने शब्द से ही जितने भी जीव चाहे उत्पन्न कर सकती है, लेकिन ब्रह्म ने उसकी बात नहीं मानी और बलात्कार करने की ठान ली। अपनी इज्जत की रक्षा के लिए दुर्गा ने सूक्ष्म रूप धारण किया और ब्रह्म के मुख के द्वारा उसके पेट में प्रवेश कर गई और पूर्णब्रह्म से अपनी रक्षा की याचना की।

ब्रह्म को काल नाम देना और उसे सतलोक से निष्कासित करना

पूर्णब्रह्म (कविर्देव) ने तुरंत अपने पुत्र योग संतायन (जोगजीत) का रूप धारण कर वहां प्रकट हुए और दुर्गा को ब्रह्म के उदर से बाहर निकाला। उन्होंने ब्रह्म को दंडित करते हुए कहा कि आज से उसका नाम "काल" होगा और वह जन्म-मृत्यु के चक्र में बंधा रहेगा। इसके साथ ही उसे 21 ब्रह्माण्डों सहित सतलोक से निष्कासित कर दिया गया।


काल के 21 ब्रह्माण्डों का परिचय और रचना

ज्योति निरंजन (काल) को 21 ब्रह्माण्ड प्रदान किए गए, जिसमें वह अपनी पत्नी दुर्गा के साथ रहता है और विभिन्न जीवों की रचना करता है। इस प्रक्रिया में, दुर्गा ने ब्रह्मा, विष्णु, और शिव को जन्म दिया, जो क्रमशः सृष्टि, पालन, और संहार के देवता माने जाते हैं। ब्रह्मा, जो कि ब्रह्म (काल) का पुत्र है, एक ब्रह्माण्ड में केवल तीन लोकों (पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक, और पाताल लोक) का स्वामी है, जबकि ब्रह्म (काल) सभी 21 ब्रह्माण्डों का स्वामी है।

आत्माओं का काल के जाल में फंसना और उनके दुखों का कारण

काल (ज्योति निरंजन) के ब्रह्माण्डों में फंसी आत्माएँ सतलोक के आनंद को छोड़कर संसार के दुख और मोह माया में बंध गई हैं। इस दुनिया में, वे जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस गई हैं और अज्ञानता के कारण इस चक्र से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। काल की सृष्टि में हर आत्मा अपनी असली पहचान और सत्य प्रभु से अनभिज्ञ होकर, सांसारिक सुखों और दुखों में उलझी रहती है।

काल के जाल से मुक्ति का मार्ग

काल के जाल से मुक्ति पाने के लिए आत्माओं को अपने असली घर सतलोक की ओर लौटने का प्रयास करना होगा। यह तब संभव है जब आत्मा को पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो, जो कि केवल एक सच्चे संत के द्वारा दीक्षा लेने से ही संभव है। सतभक्ति और सत्यज्ञान के माध्यम से ही आत्मा इस संसार के बंधनों से मुक्त होकर अपने सच्चे स्थान सतलोक में लौट सकती है। पूर्णब्रह्म, जिसे कबीर परमेश्वर के रूप में जाना जाता है, ही वह शक्ति है जो आत्माओं को इस जाल से मुक्त कर सकती है और उन्हें वास्तविक सुख और शांति प्रदान कर सकती है।

आत्माओं का असली स्थान और उनकी यात्रा

इस संसार में प्रत्येक आत्मा अपने असली घर सतलोक से भटककर काल के जाल में फंस गई है। जब तक आत्मा सच्चे ज्ञान और सतभक्ति का अनुसरण नहीं करेगी, तब तक वह जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसी रहेगी। संत रामपाल जी महाराज जैसे सच्चे संत के मार्गदर्शन में सतभक्ति करने से ही आत्मा इस काल के जाल से मुक्त हो सकती है और अपने असली स्थान सतलोक में लौट सकती है, जहां अनंत सुख और शांति है।

FAQs


1: काल कौन सा देवता है?

काल, जिसे ज्योति निरंजन, ब्रह्म, क्षर पुरुष, और धर्मराय के नाम से भी जाना जाता है, 21 ब्रह्माण्डों का स्वामी है। वह शैतान के रूप में जाना जाता है और देवी दुर्गा उसकी पत्नी हैं। वह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव का पिता है और आत्माओं को जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा कर रखता है।

2: आत्माएं काल के चक्र में कैसे फंसी?

आत्माओं का सच्चा घर सतलोक है। काल (ज्योति निरंजन) की तपस्या के कारण, आत्माएँ उसके प्रति आकर्षित हो गईं और सत्य प्रभु से विमुख हो गईं। इस कारण से वे काल के ब्रह्माण्डों में फंस गईं और जन्म-मृत्यु के चक्र में पड़ गईं।

3: आत्माएं काल के जाल से कैसे बच सकती हैं?

आत्माएँ काल के जाल से सच्चे ज्ञान और सतभक्ति के माध्यम से ही बच सकती हैं। इसके लिए पूर्ण संत से दीक्षा लेकर सतभक्ति करनी होगी, जो उन्हें काल के चक्र से मुक्ति दिला सकता है।

4: काल को समझना क्यों जरूरी है?

काल को समझना जरूरी है क्योंकि यह हमें जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने में मदद करता है। काल ने हम आत्माओं को अपने स्वार्थ के लिए फंसा रखा है, और केवल सच्चे ज्ञान के माध्यम से ही हम इससे मुक्त हो सकते हैं।

5: काल से छुटकारा पाने के लिए क्या करें?

काल से छुटकारा पाने के लिए पवित्र ग्रंथों में दिए गए ज्ञान को समझें और सतभक्ति करें। इसके लिए एक सच्चे संत की शरण में आकर दीक्षा लें और उनके बताए मार्ग का अनुसरण करें।

Q6: काल और भगवान में क्या अंतर है?

काल एक शैतान है जो 21 ब्रह्माण्डों का मालिक है और आत्माओं को जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा कर रखता है। दूसरी ओर, भगवान कबीर (कबीर परमेश्वर) सर्वशक्तिमान, रचनाकार, पालनकर्ता, और सच्चा मार्गदर्शक हैं, जो आत्माओं को काल के जाल से मुक्त कर सतलोक में ले जाते हैं। 


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